World AIDS Vaccine Day: 42 साल बाद भी लाइलाज बीमारी है एड्स, अब तक नहीं बनी इसकी वैक्सीन, जानें इसके लक्षण
एड्स की पहचान आज से 42 साल पहले यानी साल 1981 में अमेरिका में हुई थी. ये एक ऐसी बीमारी है जो मरीज के इम्यून सिस्टम पर सीधा हमला करती है और उसे इतना कमजोर बना देती है कि शरीर किसी भी अन्य बीमारी से बचाव करने में असमर्थ हो जाता है.
एड्स जैसी खतरनाक बीमारी के प्रति जागरुक करने के लिए दुनियाभर में हर साल 18 मई को विश्व एड्स वैक्सीन दिवस (World AIDS Vaccine Day 2023) मनाया जाता है. एड्स की पहचान आज से 42 साल पहले यानी साल 1981 में अमेरिका में हुई थी. ये एक ऐसी बीमारी है जो मरीज के इम्यून सिस्टम पर सीधा हमला करती है और उसे इतना कमजोर बना देती है कि शरीर किसी भी अन्य बीमारी से बचाव करने में असमर्थ हो जाता है.
साल 1997 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने मॉर्गन स्टेट यूनिवर्सिटी में एक भाषण के दौरान कहा था कि 'मात्र एक प्रभावी, निवारक एचआईवी वैक्सीन ही एड्स के खतरे को कम और अंत में मिटा सकती है.' साथ ही उन्होंने अगले एक दशक के अंदर HIV वैक्सीन बनाने की बात कही थी. उनके इस भाषण की वर्षगांठ मनाने के लिए 18 मई 1998 को पहली बार विश्व एड्स वैक्सीन दिवस मनाया गया था और तब से हर साल 18 मई को World AIDS Vaccine Day मनाया जाता है. ये दिन विशेषज्ञों को वैक्सीन बनाने की दिशा में और बेहतर प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है. आइए आज World AIDS Vaccine Day के मौक पर आपको बताते हैं खास बातें.
क्या होता है एड्स
एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिशिएंसी सिंड्रोम (Acquired Immunodeficiency Syndrome- AIDS ) है. यह एक संक्रामक बीमारी है, जो एक से दूसरे व्यक्ति में फैलती है. जिस वायरस से एड्स होता है, उसे एचआईवी (Human Immunodeficiency Viruses) कहते हैं. एचआईवी एक ऐसा वायरस है जो सीधे व्यक्ति के इम्यून सिस्टम पर अटैक करता है और उसे बेहद कमजोर बना देता है. एचआईवी से पीड़ित मरीज के शरीर में तेजी से व्हाइट ब्लड सेल्स कम होना शुरू हो जाते हैं और उसका शरीर अन्य बीमारियों से बचाव में असमर्थ हो जाता है. ऐसे में एड्स के अलावा तमाम अन्य रोग भी उसे तेजी से चपेट में लेते हैं और व्यक्ति की स्थिति खराब होने लगती है कि वो मौत की दहलीज पर पहुंच जाता है.
क्या हैं एड्स के लक्षण
- मुंह में सफेद चकत्तेदार धब्बे उभरना
- अचानक वजन कम होना
- तेज बुखार और लगातार खांसी
- अत्यधिक थकान
- शरीर से अधिक पसीना निकलना
- बार-बार दस्त लगना
- शरीर में खुजली और जलन
- गले, जांघों और बगलों की लसिका ग्रंथियों की सूजन से गांठें पड़ना,,
- निमोनिया और टीबी
- स्किन कैंसर की समस्या आदि
एड्स की वैक्सीन क्यों नहीं बन सकी
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पोलियो, जॉन्डिस, सर्वाइकल कैंसर और यहां तक कि कोरोना जैसी घातक बीमारियों के टीके तक बन चुके हैं. लेकिन एड्स को जड़ से समाप्त करने के लिए वर्षों से लगातार शोध हो रहे हैं, लेकिन फिर भी इसमें सफलता नहीं मिल पायी है. इसकी कई वजह हैं. दरअसल जब एचआईवी का वायरस शरीर में प्रवेश करता है, तो ये वायरस शरीर में लंबे समय तक छिपा रहता है. यहां तक कि इम्यून सिस्टम भी काफी समय तक इसका पता नहीं लगा पाता है.
इसके अलावा एचआईवी वायरस में काफी ज्यादा म्यूटेशन होते हैं. ऐसे में इम्यून सिस्टम इस वायरस को खत्म नहीं कर पाता, लेकिन ये वायरस इम्यून सिस्टम को जरूर बेहद कमजोर कर देता है और उस पर अपना अधिकार जमा लेता है. वायरस के छिपने और समय-समय पर स्वरूप बदलने की प्रवृत्ति वैक्सीन के मामले में भी समस्या पैदा करती है. इसके अलावा अधिकतर वायरस की वैक्सीन डेड वायरस और आरएनए से बनती है. जब डेड वायरस शरीर में डाला जाता है तो इससे शरीर में एंटीबॉडीज बनती है. लेकिन एचआईवी के संक्रमण के मामले में डेड वायरस से एंटीबॉडी नहीं बन पाती है. इन तमाम कारणों से एड्स की वैक्सीन बना पाना आज भी एक चुनौती बना हुआ है.
कैसे होता है एड्स का इलाज
एचआईवी को मारने वाला वैक्सीन बेशक अभी नहीं बन पाया है, लेकिन इससे पीड़ित लोगों के लिए कुछ ऐसी दवाएं आ चुकी हैं, जो शरीर में एचआईवी वायरस के अमाउंट को नियंत्रित कर सकती हैं. इन दवाओं को ART कहते हैं. ART के जरिए करीब छह माह के अंदर एचआईवी वायरस काबू में आ जाते हैं. समय रहते अगर एड्स के मरीजों को सही दवाएं दी जाएं, तो उनकी उम्र को बढ़ाया जा सकता है.
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